मेजर दलपत सिंह शेखावत कहानी इतिहास

 मेजर दलपत सिंह शेखावत कहानी इतिहास | Major Dalpat Singh Shekhawat History In Hindi


Major Dalpat Singh Shekhawat History In Hindi : भारत के वीर यौद्धाओं जवानों की किर्तिगाथाएं न केवल इस भूमि से जुड़ी है बल्कि संसार के कई स्थानों पर उनकी वीरता की छाप छोड़ी हैं. कुछ ऐसी ही कथा है मेजर दलपत सिंह शेखावत कहानी इतिहास में हम सिंह के जीवन परिचय, जीवनी, बायोग्राफी को विस्तार से जानेंगे.

मेजर दलपत सिंह शेखावत इतिहास | Major Dalpat Singh In Hindi

मेजर दलपत सिंह शेखावत कहानी इतिहास | Major Dalpat Singh Shekhawat History In Hindi

हीरो ऑफ हाइफा, रावणा राजपूत समाज के गौरव दलपत सिंह 

मेजर दलपत सिंह शेखावत का जन्म देवली हाउस जोधपुर में विश्व प्रसिद्ध पोलो खिलाड़ी कर्नल हरिसिंह शेखावत रावणा राजपूत के घर 26 जनवरी 1892 को हुआ. आपकी शिक्षा इस्टबर्न कॉलेज इंग्लैंड में हुई. 18 वर्ष की युवावस्था में रियासत की सेना जोधपुर लांसर में घुड़सवार के रूप में सैन्य सेवा प्रारम्भ कर ये मेजर के पद तक पहुंचे.

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Major Dalpat Singh Shekhawat History In Hindi : भारत के वीर यौद्धाओं जवानों की किर्तिगाथाएं न केवल इस भूमि से जुड़ी है बल्कि संसार के कई स्थानों पर उनकी वीरता की छाप छोड़ी हैं. कुछ ऐसी ही कथा है मेजर दलपत सिंह शेखावत कहानी इतिहास में हम सिंह के जीवन परिचय, जीवनी, बायोग्राफी को विस्तार से जानेंगे.

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हीरो ऑफ हाइफा, रावणा राजपूत समाज के गौरव दलपत सिंह 

मेजर दलपत सिंह शेखावत का जन्म देवली हाउस जोधपुर में विश्व प्रसिद्ध पोलो खिलाड़ी कर्नल हरिसिंह शेखावत रावणा राजपूत के घर 26 जनवरी 1892 को हुआ. आपकी शिक्षा इस्टबर्न कॉलेज इंग्लैंड में हुई. 18 वर्ष की युवावस्था में रियासत की सेना जोधपुर लांसर में घुड़सवार के रूप में सैन्य सेवा प्रारम्भ कर ये मेजर के पद तक पहुंचे.

प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की की सेना ने हाइफा पर कब्जा कर लिया. वे वहां युद्धियों पर 3 अत्याचार कर रही थी और तुर्की सेना का मोर्चा बहुत मजबूत था तब उस पर विजय हासिल करने के लिए भारतीय सेना का दायित्व मेजर दलपत सिंह शेखावत को दिया गया, जिन्होंने सच्चे सेनापति की तरह बहादुरी का असाधारण परिचय दिया. और मात्र एक घंटे में हाइफा शहर जो इजराइल का प्रमुख शहर था.

को तुर्कों से मुक्त कराकर विजय हासिल की परन्तु इस विजय में मेजर दलपत सिंह शेखावत 23 सितम्बर 1918 को 26 वर्ष की अल्प आयु में वीरगति को प्राप्त हुए. उनकी याद में ब्रिटिश सेना के अधिकारी कर्नल हेरवी ने कहा कि उनकी मृत्यु केवल जोधपुर ही नहीं अपितु पूरे ब्रिटिश साम्राज्य के लिए बड़ी क्षति हैं.

मरणोपरांत आपकों ब्रिटिश सेना का सर्वोच्च पुरस्कार मिलट्रीक्रोस प्रदान किया गया व हाइफा हीरो के नाम से सम्मान दिया गया. इजराइल सरकार इस दिन को हाइफा हीरो दिवस के रूप में मनाती है और मेजर दलपत सिंह शेखावत की जीवनी को अपने स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल कर पढ़ाती हैं.

रावणा राजपूत का खून था वो अपनी भारत माता का लाल
हैफा के युद्ध में जिसने किया था खूब कमाल
कूद गया था रणभूमि में ऐसा वो दिलेर
लड़ रहा था जैसे हो माँ भवानी का वो शेर
खुद लड़ा था वो रावणा राजपूत सरदार
टूट पड़ा दुश्मन पर बनकर मौत का अवतार
मरा मगर डगा नहीं वो रावणा शेर - ए - राजस्थान
मर कर तुमने बढ़ा दी हिन्द देश की शान
मेजर दलपत सिह को याद रखेगा हिन्दुस्तान

मेजर दलपत सिंह शेखावत कहानी इतिहास | Major Dalpat Singh Shekhawat History In Hindi

Major Dalpat Singh Shekhawat History In Hindi : भारत के वीर यौद्धाओं जवानों की किर्तिगाथाएं न केवल इस भूमि से जुड़ी है बल्कि संसार के कई स्थानों पर उनकी वीरता की छाप छोड़ी हैं. कुछ ऐसी ही कथा है मेजर दलपत सिंह शेखावत कहानी इतिहास में हम सिंह के जीवन परिचय, जीवनी, बायोग्राफी को विस्तार से जानेंगे.

मेजर दलपत सिंह शेखावत इतिहास | Major Dalpat Singh In Hindi

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मेजर दलपत सिंह शेखावत कहानी इतिहास | Major Dalpat Singh Shekhawat History In Hindi

हीरो ऑफ हाइफा, रावणा राजपूत समाज के गौरव दलपत सिंह 

मेजर दलपत सिंह शेखावत का जन्म देवली हाउस जोधपुर में विश्व प्रसिद्ध पोलो खिलाड़ी कर्नल हरिसिंह शेखावत रावणा राजपूत के घर 26 जनवरी 1892 को हुआ. आपकी शिक्षा इस्टबर्न कॉलेज इंग्लैंड में हुई. 18 वर्ष की युवावस्था में रियासत की सेना जोधपुर लांसर में घुड़सवार के रूप में सैन्य सेवा प्रारम्भ कर ये मेजर के पद तक पहुंचे.

प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की की सेना ने हाइफा पर कब्जा कर लिया. वे वहां युद्धियों पर 3 अत्याचार कर रही थी और तुर्की सेना का मोर्चा बहुत मजबूत था तब उस पर विजय हासिल करने के लिए भारतीय सेना का दायित्व मेजर दलपत सिंह शेखावत को दिया गया, जिन्होंने सच्चे सेनापति की तरह बहादुरी का असाधारण परिचय दिया. और मात्र एक घंटे में हाइफा शहर जो इजराइल का प्रमुख शहर था.

को तुर्कों से मुक्त कराकर विजय हासिल की परन्तु इस विजय में मेजर दलपत सिंह शेखावत 23 सितम्बर 1918 को 26 वर्ष की अल्प आयु में वीरगति को प्राप्त हुए. उनकी याद में ब्रिटिश सेना के अधिकारी कर्नल हेरवी ने कहा कि उनकी मृत्यु केवल जोधपुर ही नहीं अपितु पूरे ब्रिटिश साम्राज्य के लिए बड़ी क्षति हैं.

मरणोपरांत आपकों ब्रिटिश सेना का सर्वोच्च पुरस्कार मिलट्रीक्रोस प्रदान किया गया व हाइफा हीरो के नाम से सम्मान दिया गया. इजराइल सरकार इस दिन को हाइफा हीरो दिवस के रूप में मनाती है और मेजर दलपत सिंह शेखावत की जीवनी को अपने स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल कर पढ़ाती हैं.

दिल्ली में त्रिमूर्ति भवन के सामने तीन घुड़सवार सैनिकों में से एक मेजर दलपत सिंह शेखावत की है. भारतीय सेना इस दिवस को बड़े सम्मान से मनाती है और उनकी शौर्य गाथा को नमन करती हैं. आपकी एक मूर्ति रॉयल गैलरी लंदन में सम्मानपूर्वक लगी हुई हैं.

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रावणा राजपूत समाज के गौरव मेजर दलपत सिंह शेखावत अपने समाज में जन्म लेने वाले वीर पुरुष ने हमारे देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी अपनी ताकत का लोहा मनवाया. राजेन्द्र सिंह नारलाई ने इस शहीद मेजर के सम्मान में एक कविता लिखी है उस कविता की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं.

रावणा राजपूत का खून था वो अपनी भारत माता का लाल
हैफा के युद्ध में जिसने किया था खूब कमाल
कूद गया था रणभूमि में ऐसा वो दिलेर
लड़ रहा था जैसे हो माँ भवानी का वो शेर
खुद लड़ा था वो रावणा राजपूत सरदार
टूट पड़ा दुश्मन पर बनकर मौत का अवतार
मरा मगर डगा नहीं वो रावणा शेर - ए - राजस्थान
मर कर तुमने बढ़ा दी हिन्द देश की शान
मेजर दलपत सिह को याद रखेगा हिन्दुस्तान

भारतीय सेना 23 सितंबर को मनाती है हाइफा दिवस

23 सितंबर 1918 को पहले विश्व युद्ध के दौरान आज के इजरायल के हाइफा शहर में ओटोमन साम्राज्य के खिलाफ एक लड़ाई लड़ी गई थी. 15वीं इम्पीरियल सर्विस कैवेलरी ब्रिगेड में ब्रिटिश भारत की तीन रियासतों मैसूर हैदराबाद और जोधपुर की टुकड़ियों ने इस युद्ध में हिस्सा लिया था.

ऑटोमन साम्राज्य से हाइफा की मुक्ति के इस सैन्य अभियान की स्मृति में प्रतिवर्ष 23 सितम्बर को भारतीय सेना हाइफा दिवस मनाती हैं. इस युद्ध में बहादुरी के लिए कैप्टन अमन सिंह बहादुर और दफादार जोर सिंह को इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट और कैप्टन अनूप सिंह और सेकेंड लेफ्टिनेंट सागत सिंह को मिलिट्री क्रॉस से नवाजा गया था. हाइफ के हीरो नाम से विख्यात मेजर दलपत सिंह को भी मिलिट्री क्रोस सम्मान दिया गया.

उत्तरी इजरायल में बसा तीन लाख की आबादी वाला हाइफा शहर भारत और इजरायल के प्रगाढ़ रिश्तों की एक वजह भी हैं. किस तरह आटोमन एम्पायर वाली टर्की और आस्ट्रिया की सेनाओ को तलवारों के दम पर पराजित कर यहूदियों को उनका शहर दिलाया गया था. इजरायल के स्कूल में वॉर ऑफ़ हाइफा और ब्रिगेडियर दलपत सिंह के शौर्य के बारे में आज भी पढ़ाया जाता हैं. दिल्ली के तीनमूर्ति स्मारक इन्ही की याद में बना हैं.


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